अब मेरे इस हिसाब से अव्यावहारिक भ्रष्टाचार का यह सर्वोत्तम उदाहरण है। मसलन, ताज़ा ताज़ा भ्रष्ट हुआ इंसान ये सोचकर दो पैसे बनाता है कि चलो घर का खर्च अच्छे से निकल जाए। जब खर्च निकल जाता है तो उसे लगता है कि दो पैसे और बना एक घर खरीद लूं।
वो घर खरीदकर हटता है तभी उसकी नज़र बड़े हो रहे अपने निकम्मे बड़े बेटे पर पड़ती है। वो ये सोचकर घबरा जाता है कि मेरे जाने के बाद इसका क्या होगा। दो पैसा और बना वो उसके लिए भी एक मकान बना लेता है। फिर बीवी याद दिलाती है कि बड़े का तो ठीक है, मगर छोटे ने क्या गुनाह किया है। पत्नीव्रत भ्रष्ट अधिकारी बीवी के इस आग्रह पर छोटे के लिए भी घर बनाता है।
फिर वो दोनों बेटों की होने वाली बीवियों का गोल्ड बनाता है और ‘आदमी के हाथ में कुछ कैश भी होना चाहिए’ की मजबूरी को समझते हुए एकाध छिटपुट फ्राड और करके चालीस पचास लाख कैश भी जोड लेता है।
अब अगर आप मुझसे पूछें तो कहूंगा कि बढ़ती महंगाई और बच्चों के प्रति जवाबदेही को देखते हुए आज के दौर में इतना भ्रष्टाचार जस्टिफाइड है। मगर जब मैं देखता हूं कि आदमी ने भ्रष्टाचार की कमाई से तीन अलग अलग शहरों में एक दर्जन मकान बना लिए, तो मुझे इस बात पर गुस्सा नहीं आता कि उसने इन मकानों के मुहूर्त पर मुझे बुलाया क्यों नहीं, बल्कि उसकी बुद्धि पर तरस आता है।
मैं सोचता हूं कि जब आपके पास पहले से इतनी दौलत है तो फिर अलग से आठ नौ मकान और बनाने की ज़रूरत क्या थी। क्या इतने मकान खरीदकर किराए पर चढ़ाने हैं। और सत्तर अस्सी लाख के मकान पर अगर आठ दस हज़ार किराया मिल भी गया, तो ये कहां की अक्लमंदी है। दस हज़ार रुपये तो अगर आप ज़ोर से छींक दें तो आपके नथूनों से निकल सकते हैं इसके लिए लाखों का फ्राड करने की ज़रूरत क्या थी।
इसके अलावा जब घर में पहले से बीस पच्चीस तौले सोना है तो अलग अलग लाकरों में सोने के बिस्किट खरीदकर रखने की ज़रूरत क्या है। इन बिस्किटों को क्या उन्हें रिटायरमेंट के बाद चाय में डुबोकर खाना है।
इसके अलावा भी इन भ्रष्टाचारों में कई अव्यावहारिक चीजें देखने को मिलती है। मुझे लगता है कि वक्त आ गया है कि फाइनेंशियल एडवाइज़र की तर्ज़ पर करप्शन एडवाइज़र भी होने चाहिए जो इन अधिकारियों को समझाएं कि बढ़ती महंगाई दर को देखते हुए उन्हें आने वाले तीन चार सौ सालों और आठ दस पीढ़ियों के लिए कितने पैसे चाहिए होंगे। और एक बार जब अधिकारी वो टारगेट अचीव कर ले तो एडवाइज़र उन्हें सलाह दे कि सर, अब बस कीजिए। और फ्राड किया तो उसका कोई फायदा नहीं होगा, आप खुद को रिस्क में डालेंगे। वैसे भी किसी सयाने ने कहा है कि कब शुरू करना चाहिए इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है यह जानना कि हमें कब रुक जाना चाहिए।
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